Best Chanakya Quotes For Motivation In HIndi
Best Chanakya Quotes For Motivation In HIndi
.
"निम्न अनुष्ठानों (भूमि, धन-व्यापार उद्योग -धंधों) से आय के साधन भी बढ़ते हैं।"
" विचार ना करके कार्य करने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है।"
" अस्थिर मन वाले की सोच स्थिर नहीं रहती।"
"कार्य के मध्य में अति विलम्ब और आलस्य उचित नहीं है।"
"कार्य सिद्धि के लिए हस्त कौशल का उपयोग करना चाहिए। "
" अशुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए।"
"समय को समझने वाला , कार्य सिद्ध करता है।"
"परीक्षा करने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। "
"मूर्ख लोग कार्यों के मध्य कठिनाई उत्पन्न होने पर दोष ही निकाला करते हैं।"
"कार्य की सिद्धि के लिए उदारता नहीं बरतनी चाहिए।"
"जिन्हें भाग्य पर विश्वास नहीं होता, उनके कार्य पुरे नहीं होते। "
"प्रयत्न ना करने से कार्य में विघ्न पड़ता है।"
"जो अपने कर्तव्यों से बचते हैं, वे अपने आश्रितों परिजनों का भरण पोषण नहीं कर पाते।"
"जो अपने कर्म को नहीं पहचानता, वह अंधा है।
"राज्यतंत्र को ही नीतिशास्त्र कहते हैं।"
"राजतंत्र से संबंधित घरेलू और बाह्य , दोनों कर्तव्यों को राजतंत्र का अंग कहा जाता है।"
"राजनीति का संबंध केवल अपने राज्य को समृद्धि प्रदान करने वाले मामलों से होता है।"
"ईर्ष्या करने वाले दो समान व्यक्तियों में विरोध पैदा कर देना चाहिए।"
"चतुरंगणी सेना (हाथी, घोड़े, रथ और पैदल) होने पर भी इन्द्रियों के वश में रहने वाला राजा नष्ट हो जाता है।"
"जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते हैं। "
"कामी पुरुष कोई कार्य नहीं कर सकता। "
"पूर्वाग्रह से ग्रसित दंड देना लोक निंदा का कारण बनता है।"
"धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है।"
"दंड से सम्पदा का आयोजन होता है।"
"दंड का भय ना होने से लोग अकार्य करने लगते हैं।"
" दण्डनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है।"
"आत्मरक्षा से सबकी रक्षा होती है।"
"कार्य करने वाले के लिए उपाय सहायक होता है।"
"कार्य का स्वरुप निर्धारित हो जाने के बाद वह कार्य लक्ष्य बन जाता है। "
"ज्ञानी और छल-कपट से रहित शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाएँ।"
"समस्त कार्य पूर्व मंत्रणा से करने चाहिएं।"
"विचार अथवा मंत्रणा ( परामर्श )को गुप्त ना रखने पर कार्य नष्ट हो जाता है।"
"लापरवाही अथवा आलस्य से भेद खुल जाता है।"
"मन्त्रणा की संपति से ही राज्य का विकास होता है। "
"भविष्य के अन्धकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है।"
"मंत्रणा के समय कर्तव्य पालन में कभी इर्ष्या नहीं करनी चाहिए।"
"मंत्रणा रूप आँखों से शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है।"
"राजा, गुप्तचर और मंत्री तीनों का एक मत होना किसी भी मंत्रणा की सफलता है।"
"कार्य अकार्य के तत्व दर्शी ही मंत्री होने चाहिए।"
"छः कानों में पड़ने से (तीसरे व्यक्ति को पता पड़ने से ) मंत्रणा का भेद खुल जाता है।"
"अप्राप्त लाभ आदि राज्यतंत्र के चार आधार हैं।"
"आलसी राजा अप्राप्त लाभ को प्राप्त नहीं करता।"
"शक्तिशाली राजा लाभ को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।"
"सुख का आधार धर्म है।"
"अर्थ का आधार राज्य है।"
"राज्य का आधार अपनी इन्द्रियों पर विजय पाना है।
"प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के संपन्न होने से नेता विहीन राज्य भी संचालित होता रहता है। "
"वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है।"
"वृद्ध सेवा अर्थात ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है। "
"ज्ञान से राजा अपनी आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है।"
"आत्मविजयी सभी प्रकार की संपति एकत्र करने में समर्थ होता है।"
"जहाँ लक्ष्मी (धन) का निवास होता है, वहाँ सहज ही सुख सम्पदा आ जुड़ती है । "
"इन्द्रियों पर विजय का आधार विनम्रता है।"
" प्रकृति का कोप सभी कोपों से बड़ा होता है। "
"शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए। "
"सुख और दुःख में समान रूप से सहायक होना चाहिए। "
"स्वाभिमानी व्यक्ति प्रतिकूल विचारों को सम्मुख रखकर दुबारा उन पर विचार करें।"
" अविनीत व्यक्ति को स्नेही होने पर भी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए। "
"शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करें।"
"अपने से अधिक शक्तिशाली और समान बल वाले से शत्रुता ना करें।
"मंत्रणा को गुप्त रखने से ही कार्य सिद्ध होता है।
"योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है।"
"एक अकेला पहिया दूर तक नहीं चला करता।"
" अविनीत स्वामी के होने से तो स्वामी का ना होना अच्छा है।"
"जिसकी आत्मा संयमित होती है, वही आत्मविजयी होता है।"
"स्वभाव का अतिक्रमण अत्यंत कठिन है।"
"धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं। "
"दुष्ट स्त्री बुद्धिमान व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है।"
"आग में आग नही डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।"
"मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है।
"दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है।"
"दूध के लिए हथिनी पालने की जरूरत नहीं होती अर्थात आवश्कयता के अनुसार साधन जुटाने चाहिए।"
"कठिन समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए।"
"कल का कार्य आज ही कर ले।"
" अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है। "
"सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।"
"किसी लक्ष्य की सिद्धि में कभी शत्रु का साथ ना दे ।"
"आलसी का ना वर्तमान होता है, ना भविष्य । "
"सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।"
"ढेकुली नीचे सिर झुकाकर ही कुँए से जल निकालती है अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते हैं।"
"सत्य भी यदि अनुचित है तो उसे नहीं कहना चाहिए।
"समय का ध्यान नहीं रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में निर्विघ्न नहीं रहता।
"दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है। "
"चंचल चित वाले के कार्य कभी समाप्त नहीं होते।
"पहले निश्चय करिए, फिर कार्य आरम्भ करें।"
"भाग्य पुरुषार्थी के पीछे चलता है।
"अर्थ और धर्म , कर्म का आधार है। "
" शत्रु दण्ड नीति के ही योग्य है। "
"कठोर वाणी अग्नि दाह से भी अधिक तीव्र दुःख पहुँचाती है।"
"जन्म-मरण में दुःख ही है।"
"ये मत सोचो की प्यार और लगाव एक ही चीज है दोनों एक दूसरे के दुश्मन हैं। ये लगाव ही है जो प्यार को खत्म कर देता है।
"दौलत, दोस्त, पत्नी और राज्य दोबारा हासिल किये जा सकते हैं, लेकिन ये शरीर दोबारा हासिल नहीं किया जा सकता।"
"पृथ्वी सत्य पे टिकी हुई है। ये सत्य की ही ताकत है, जिससे सूर्य चमकता है और हवा बहती है। वास्तव में सभी चीजें सत्य में टिकी हुई हैं।
"फूलों की खुशबू हवा की दिशा में ही फैलती है, लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई चारों तरफ फैलती है।"
"जो हमारे दिल में रहता है, वो दूर होके भी पास है। लेकिन जो हमारे दिल में नहीं रहता वो पास होके भी दूर है।
"जैसे एक सूखा पेड़ आग लगने पे पुरे जंगल को जला देता है उसी प्रकार एक दुष्ट पुत्र पुरे परिवार को खत्म कर देता है।
" शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें। "
" सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता।
"अन्न के सिवाय कोई दूसरा धन नहीं है।"
"भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है।"
"विद्या ही निर्धन का धन है।"
"शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए।"
"गरीब धन की इच्छा करता है, पशु बोलने योग्य होने की , आदमी स्वर्ग की इच्छा करते हैं और धार्मिक लोग मोक्ष की।"
"जो गुजर गया उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए, ना ही भविष्य के बारे में चितिंत होना चाहिए। समझदार लोग केवल वर्तमान में ही जीते हैं।"
"संकट में बुद्धि भी काम नहीं आती है। "
"जो जिस कार्य में कुशल हो उसे उसी कार्य में लगना चाहिए।"
"किसी भी कार्य में पल भर का भी विलम्ब ना करें। "
"दुर्बल के साथ संधि ना करें।
"किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही शत्रु मित्र बनता है।"
"कच्चा पात्र कच्चे पात्र से टकराकर टूट जाता है। "
"संधि और एकता होने पर भी सतर्क रहें।"
"शत्रुओं से अपने राज्य की पूर्ण रक्षा करें। "
"शिकारपरस्त राजा धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट कर लेता है।"
"भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दुःखदायी हो जाता है।"
"शत्रु की बुरी आदतों को सुनकर कानों को सुख मिलता है।"
"चोर और राज कर्मचारियों से धन की रक्षा करनी चाहिए।
"एक समझदार आदमी को सारस की तरह होश से काम लेना चाहिए और जगह वक्त और अपनी योग्यता को समझते हुए अपने कार्य को सिद्ध करना चाहिए। "
"जैसे एक बछड़ा हजारो गायों के झुंड में अपनी माँ के पीछे चलता है। उसी प्रकार आदमी के अच्छे और बुरे कर्म उसके पीछे चलते हैं।"
"विद्या को चोर भी नहीं चुरा सकता।"
"सबसे बड़ा गुरु मंत्र, अपने राज किसी को भी मत बताओ ये तुम्हे खत्म कर देगा।"
"आदमी अपने जन्म से नहीं अपने कर्मों से महान होता है।"
"ईश्वर मूर्तियों में नहीं है। आपकी भावनाएँ ही आपका ईश्वर है। आत्मा आप मंदिर है।"
"आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति का कितना भी सम्मान कर लें, वह सदा दुःख ही देता है।"
"पुस्तकें एक मुर्ख आदमी के लिए वैसे ही हैं, जैसे एक अंधे के लिए आइना । "
0 Comments
If You have any doubts, Please let me know.